संवाद

 

संवाद/image credit: pixabay

मेरे पास अपने पिता को बताने के लिए कई बातें हैं. कई बार लगता हैं कि इन बातों को बताते वक़्त, मेरे पास शब्द कम नहीं पड़ जाए. मगर उनके पास सिमित समय होने के कारण, मैं शब्दों की कमी के भय से मुक्त हो जाता हूँ.

फिर भी मुझे उनसे बात करने के लिए शब्दों को खोजना पड़ जाता हैं. और उन शब्दों के उचारण से लेकर उनके शाब्दिक अर्थ की बारीकी को समझना पड़ता हैं. फिर कही मैं उन शब्दों को बोलने के लिए तैयार हो पाता हूँ.

मगर जब असल संवाद की बारी आती हैं, तब ये सारी तैयारियां धरी की धरी रह जाती हैं. वे शब्द मेरा साथ छोड़कर कही छुप जाते हैं. जैसे संवाद से पहले मैं उनसे छुप रहा होता हूँ. और जैसे वो स्वयं अपने पिता से छुप रहे होते हैं.

Post a Comment

0 Comments