Book Review: शर्ते लागू - दिव्य प्रकाश दुबे (Sharte Laagu by Divya Prakash Dubey)

Sharte Lagu Divya Prakash Dubey book review
शर्ते लागू - दिव्य प्रकाश दुबे
दिव्य प्रकाश दुबे से मेरी पहली मुलाक़ात हिंदुस्तान टाइम्स में छपे एक लेख “Young Turks re-inventing Hindi literature” से हुई थी. दूसरी बार भी, हिंदुस्तान टाइम्स, में छपे एक लेख से ही उनसे मिलना हो पाया था. मगर दो मुलाक़ातों के बाद भी, उनका लिखा हुआ कभी पढ़ा नहीं और फिर कल यूँ ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सटे एक बुक स्टोर में उनकी दो किताबे दिख पड़ी और कल ही दोनों की दोनों पढ़ भी डाली.

आज उनकी पहली किताब के बारे में बाते करते हैं. शर्ते लागू. दूसरी मुसाफ़िर कैफ़े के बारे में किसी और दिन आराम से बातें करेंगे. वैसे उनकी एक और किताब “मसाला चाय” नाम से भी छप चुकी हैं, वो अभी अमेज़न पर आर्डर की हैं, जब आ जाएगी तब उसके बारे में बात करेंगे.

शर्ते लागू, दिव्य की कहानी संग्रह "terms and conditions apply" का दूसरा संस्करण हैं. पहला संस्करण कभी पढ़ा नहीं तो बता नहीं पायूँगा कि क्या क्या बदलाव हुए हैं.

वैसे पहली नज़र में, कुछेक कहानियाँ काफी ख़ूबसूरत लगती हैं और कुछेक के बारे में ऐसा लगता हैं कि ऐवई किताब को मोटी दिखाने के चक्कर में डाल दी गयी हो.

फिर जैसा अक्सर किसी कहानी संग्रह में होता हैं. दिव्य के कहानी संग्रह में भी  कुछेक कहानियाँ एक दुसरे की पूरक जान पड़ती हैं.

उनकी कहानियाँ “Kitty” और “समोसा” कुछ एक जैसी ही हैं, और कुछ ऐसे ही “Monkey-man” और “let’s go home” भी. फिर बाकी सब कहानियाँ पढ़कर यही महसूस होता हैं.

सारी 14  कहानियाँ पढ़कर ऐसा लगता हैं कि दिव्य ने कहानियाँ जोड़ो के हिसाब से लिखी हो. जिसमे किरदार का अंत एक कहानी में सुखद हैं तो दूसरी  में  दुखद.

दिव्य खुद भी अपनी कहानी “कागज़” में लिखते हैं, “उसका हर किरदार अलग होते हुए भी एक था. वह वही किरदार बार-बार करता हैं. यह बात दुनिया में केवल दो लोगों को पता थी. एक उसे और एक मुझे.”

इसके अलावा उनकी हर कहानी सुनी-सुनाई लगती हैं. उनके किरदारों के बारे में लगता हैं कि अभी तो मिले थे इस किरदार से. शायद, असल दुनिया में या फिर दूसरी किसी किताब में. बस इधर इन किरदारों के नाम बदलकर पारुल, शैफाली, शिवम, राहुल, किट्टी, पुत्तन, नम्रता या पल्लवी रख दिए हो.

फिर यह भी लगता हैं कि यही बात इस कहानी संग्रह और इसके किरदारों को अलग बनाती हैं. शायद, दिव्य हमे इन जानी-पहचानी कहानियों और किरदारों के कई और आयाम समझाने की कोशिश कर रहे हो, जो आयाम इनसे पहले के लेखको ने छोड़ दिए हो. जो हम समझ नहीं पाए.

कुछ भी हो, शर्ते लागू, एक बार पढ़ने लायक तो हैं. तीनो, कहानियों, किरदारों और दिव्य के लेखन, के लिए.

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