तुम मेरा घर हो

तुम मेरा घर हो 

हम शायद पहली फुर्सत मिलने पर अपने घर को ही देखते हैं. उस खिलखिलाहट से भरे गुल्दास्तान को देखते हैं. झुमके से लटके हुए विन्द्चिमस को देखते हैं. बचपन की शरारत ताकती हुई खिडकियों को देखते हैं. उस लाखो तस्वीरो से भरी दिवार को देखते हैं. नौक झोंक जैसी तीखी मिर्च के आचार के मर्तबान को देखते हैं. उस घी के साथ मुफ्त मिली चम्मच को देखते हैं. उस जैसी दूसरी चम्मच को मुफ्त पाने के लिए बीस रुपये ज्यादा देकर ख़रीदे घी के डिब्बे को देखते हैं. हम अपने आप को देखते हैं. और घर को देखते हैं. खैर हम घर को साफ़ कर हम उसे नया जैसा तो बना देते हैं. मगर हम अपने घर से ही बात नहीं कर पाते. उससे कह नहीं पाते कि तुम मेरा घर हो.

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