Book Review: जान्हवी - भारती गौड़ (Jahnavi By Bharti Gaur)

Book Review: Jahnavi By Bharti Gaur
जान्हवी - भारती गौड़
मैंने हिंदी में पढ़ना, हिंदी में लिखने के बाद शुरू किया. इसलिए मुझे पता नहीं, जान्हवी जैसी कृति हिंदी में पहले लिखी गयी थी या नहीं.

जान्हवी की कहानी बहती चली जाती हैं. कभी किसी मोड़ पर पल भर के लिए रूकती भी हैं, तो अपने साथ अपने एक संसार को रोक लेती हैं. ज़िन्दगी के कई कहे अनकहे किस्से को छेड़ती हैं और बस उन्हें छेड़कर आगे चल पड़ती हैं. गुस्सा आता हैं कि कहानी रुकी क्यों नहीं. उसने इस किस्से को पूरा किया क्यों नहीं, मगर वो इस वक़्त तक दुसरे किस्से की बात छेड़ चुकी होती हैं. बिलकुल किसी नदी की तरह. या कहू गंगा की तरह. जिसके नाम पर भारती गौड़ ने इस कहानी और इसके मुख्य किरदार का नाम रखा हैं. जान्हवी.

जिस विधा में भारती ने जान्हवी को लेखा हैं उस विधा को अंग्रेजी में “स्ट्रीम ऑफ़ कांशसनेस” कहते हैं. हिंदी में शायद इसका कोई नाम नहीं हैं तो हम इसे “मन की धारा” कह सकते हैं. मैंने पहली बार इस विधा में डी एच लॉरेंस की कहानी मेडम बोवारी को पढ़ा था. दूसरी बार वर्जिनिया वूल्फ की कहानी थ्रू द लाइटहाउस को पढ़ा था. दोनों ही कहानियां ज्यादा कुछ समझ नहीं आई. इसलिए शायद इस विधा को ज्यादा सहरा नहीं पाया. जान्हवी ने मुझे वो मौका दिया. सिर्फ इस बात के लिए मैं जान्हवी को पुरे के पुरे नंबर दे सकता हूँ.

जान्हवी जाति, तलाक़, विधवा विवाह, वृधाश्रम, बालश्रम, इंसानी रिश्तो और उनके भीतर छुपे तनाव जैसे कई विषयों पर बात करती हैं. और जैसे पहले बताया जान्हवी इन किस्से को छूती हैं, मगर उन पर पूरी तरह बात नहीं करती, किसी हल की तो आप आशा ही नहीं कर सकते. बस इस बात पर गुस्सा आता हैं, मगर इस विधा की शायद यही ख़ास बात यही हैं. यह आपको उन विषयों से मिलवाती हैं जिनसे आप कभी नहीं मिलना चाहते और भूलकर भी बात नहीं करना चाहते.

इसका मतलब यह भी नहीं कि जान्हवी में कोई कमी नहीं हैं. जान्हवी में कई कमियाँ हैं और शायद भारती कुछ ज्यादा अच्छा कर सकती थी इसलिए यह कमियां और खलती हैं. कही पर कहानी बिखरी बिखरी-सी और कही पर कुछ ज्यादा ही खिची हुई. जान्हवी और उसके छोटे भाई समीर के संवाद कुछ ज्यादा ही नाटकीय लगते हैं. कुछ इस हद तक नाटकीय की वो एक मज़ाक महसूस होने लगते हैं. चाहे उन संवादों और किस्सों में तलाक के बाद दूसरी शादी, पिता-पुत्र, और भाई-बहन के रिश्तो पर बात की गयी हो.

फिर कुछ किरदार सिर्फ कहानी को भरने के लिए लाये गए महसूस होते हैं. जैसे आदिश्री. जान्हवी की बेटी, दीनूदा, अपना घर के सदस्य, जिन्हें जान्हवी तीन अलग अलग नाम से पुकारती हैं. कुछ किरदार आते हैं जैसे निहारिका और चले जाते हैं. भारती इन सब किरदारो के लिए कुछ नहीं करती. जान्हवी की भाषा भी थोड़ी पुरानी महसूस होती हैं. शायद, भारती एक प्यूरिस्ट हैं, जिन्हें भाषा में दूसरी भाषा के शब्द लेना पसंद नहीं हैं, मगर यही बात उनकी कहानी को चालीस और पचास के दशक की कहानियो की नक़ल बनाकर रख देती हैं.

मैं कहूँगा इन सब खामियों के बावजूद जान्हवी पढने लायक हैं. कहानी के लिए ज्यादा नहीं तो, हिंदी में एक नयी विधा शुरू करने के लिए जरूर.

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