Opinion
समाज और मीडिया
समाज और मीडिया |
आपको मेरी बात पर यकीन नहीं होता तो इस शीर्षक को पढ़ले, “स्कूल कैंपस में महादलित महिला को पहले पिलाई शराब, फिर आरोपी ने किया रेप” या फिर इसे जो एक नामी-गिरामी अंग्रेजी अखबार में आज ही छपी हैं, “15-yr-old Dalit ‘raped’ by father, 4 others”.
आप इन दोनों खबरों को गौर से पढ़े तो आप पायेंगे कि यह दोनों खबरे बलात्कार से जुडी हैं. और दोनों ही खबरों में “दलित” जैसे जातिसूचक शब्द का प्रयोग हुआ हैं.
अगर आप इन दोनों खबरों को फिर से पढ़े तो आपको लगेगा कि यहा पर दो लड़कियों के साथ रेप जैसी अक्षम्य घटना हो जाती हैं और यहाँ पर हम लोग इन घटनाओं का सम्बन्ध जाति से जोड़ रहे हैं. और इन दोनों घटनाओं को सवेंदनहीन बनाने पर तुले हैं.
वैसे मुझे आसिफा बानो मामले में कई खबरों के छपने के बाद लगा था कि ऐसे जाति और धर्मं सूचक शब्दों में कमी आएगी, और ऐसा हुआ भी, कई अखबार और न्यूज़ चैनल्स ने आसिफा बानो मामले की खबरों पर “मुस्लिम” शब्द का प्रयोग बिल्कुल खत्म कर दिया था. लेकिन आज फिर इस अंग्रेजी अखबार में छपी खबर को पढ़कर लगा कि यह सब मेरा भ्रम था. यह सब आसिफा बानो मामले में भीड़ के गुस्से को शांत करने के लिए था. अगर वे सही में चिंतित थे, तो वे “दलित”, “सिख”, “इसाई”, “आदिवासी” मामलो में भी जाति और धर्मं सूचक शब्दों का प्रयोग न करते. वे आगे आकर कहते कि इस मुद्दे को आप राजनैतिक रंग ना दे. यह एक बच्चे और लड़की की अस्मिता से जुड़ा मामला हैं. इस मुद्दे की गंभीरता को बनाये रखे. समाज को बाटने वाले शब्दों के प्रयोग से बचे. मगर हम शायद दुसरे दर्जे का समाज हैं, जिसे ऐसा ही दुसरे दर्जे का न्यूज़ मीडिया मिलना चाहिए, जो बस कमजोर और बेबुनियादी खबरे दिखाते रहे.
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